नया पैमाना बनाएं

कुछ नया बदलाव समाज की सोच में लाएं

Originally published in hi
Reactions 0
595
Shubha Pathak
Shubha Pathak 09 Jun, 2020 | 1 min read
#changeinsociety

सुनती और देखती आई सदियों से,

मैं नदी सी और तुम समुद्र से,

चलो कुछ नए से पैमाने बनाओ,

मैं तुम बन जाऊं, तुम मैं बन जाओ।

क्यूं हो तुम्हारे अस्तित्व से मेरा वजूद?

और तुमसे मिलने को मीलों चलती आऊं?

कभी तुम भी पार करो लंबे पथरीले पथ, 

और मुझसे मिलने का रास्ता बनाओ!

हां अब मैं बैठी हूं शांत, स्थिर इस समुद्र सी,

लाखों ज्वार भाटे समाए हुए धीर गंभीर सी,

तुम आओ ना नदिया से होके अधीर, 

मिलन की फिर अलग हो तस्वीर!

अपना अस्तित्व त्याग के सरिता, तोड़ के सबसे पुराना रिश्ता,

हो जाती जैसे सागर में विलीन, कभी सोचा है ये है कितना कठिन?

तभी सदियों से तुम हो खारे, मीठा जल मेरा ही पाते,

मेरे दम पर बनके विशाल, जगत में अपना दंभ दिखाते!

अब सीखो त्याग तुम भी, छोड़के अपना अहंकार,

मैं भी समुद्र सी बनके विशाल, फिर करूंगी तुमको स्वीकार।

0 likes

Published By

Shubha Pathak

shubhapathakhej2

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.