ना बन पाई मैं राधा सी, जो विरह वेदना में आँसू बहाऊँ।। ना हो पाई रुक्मणि मैं, जो तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाऊँ।। ना ढल पायी सीता के साँचे में, अत्याचार सह कर भी... जो प्रीत निभाऊं।। ना अहिल्या सी असहाय रही, जो तुम्हारे स्पर्श से ही तर जाऊँ।। ना ही मीरा हो पायी मैं, जो जग त्याग जोग अपनाऊँ।। ना मैं शबरी जो तुम्हारे पथ पर, नित आशा के दीप जलाऊँ।। मैं तो स्वयं सी ही बनकर रह गयी, अब बोलो कैसे तुम्हें रिझाऊं।। बोलो, तुम तक जो पहुंचे... वो राह कैसे अपनाऊँ।।
कौनसी राह अपनाऊँ??
मैं तो हूँ अपनी सी, कोई दूजी सी कैसे बन जाऊँ??
Originally published in hi

Shubhangani Sharma
14 Jan, 2021 | 0 mins read
#Love #Devotion
1 likes
Support Shubhangani Sharma
Please login to support the author.

Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Beautiful
Please Login or Create a free account to comment.