माँ

माँ के समकक्ष कुछ नहीं।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 15 Dec, 2020 | 0 mins read
Mother is universe

तुम जैसे मुस्कुराती थी देखकर मुझे,

वैसे तो कोई भी मुस्कुराता नहीं।।

जैसे सहलाती थी बालों को मेरे,

वैसे तो कोई सहलाता नहीं।।

तुम्हारा आलिंगन, पूरी दुनिया के बराबर है,

तुम्हारे अलावा मुझे कोई भाता नहीं।।

तुम्हारा एहसास,

मेरे जिस्म से जाता ही नहीं।।

तुम्हारे खुरदरे हाथ, टटोलते मेरे हाथों को,

कभी मेहंदी लगाते पैरों को,

कोई तुमको क्यों समझाता नहीं।।

अपना रोम रोम देकर भी हमें,

क्यों तुम्हारा मन भरमाता नहीं।।

बड़ा गहरा है मन तुम्हारा,

कोई उसकी थाह पाता नहीं।।

माँ, कोई शब्द नहीं तुम्हारे लिए,

क्योंकि "माँ" शब्द ही मन में समाता नहीं।।

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Shubhangani Sharma

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