।।अदृश्य।।

हम अक्सर अदृश्य ही रहते हैं कई लोंगो के लिए। पर अपनों के लिए अदृश्य होना .....??? सोचकर देखें कैसा लगता है।।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 31 Aug, 2020 | 1 min read


मेरा होना या ना होना,

अक्सर तुम्हें दिखता ही नहीं।

क्या ये सच है दुनिया के बाज़ार में,

जो दिखता नहीं वो बिकता भी नहीं।।

मैं अदृश्य हूँ शायद इसलिए,

हूँ तुम्हारी नज़रों में गुम।।


मैंने कभी नहीं कहा तुमसे 

कि मुझे सिर आंखों पर बैठाओ तुम,

पर क्या मैं अदृश्य हूँ,

जिसे दिल खोल के भी ना चाहो तुम???


तुम्हारे लिए कई बार

चार हो जाती हूं मैं...

फिर भी तुम्हारी नज़रों में

खुद की छवि नहीं पाती हूं मैं..

मैं क्या वाकई अदृश्य हूं..

ये सोच मेरी रूह हो जाती है गुम।।


कभी तुम्हारे कहने पर चुप हो जाती हूं,

कभी तुम्हारी खुशी के लिए झुक भी जाती हूं।

पर अंत में, मैं स्वयं को अदृश्य ही पाती हूँ,

ये सोच कर मैं असहज हो जाती हूं....

आखिर क्यों हूं मैं तुम्हारी दुनिया में गुम।।


मुझे ये भी चाह नहीं कि

मेरे लिए बदल जाओ तुम,

पर इतना तो विश्वास दिला दो मुझे,

कि तुम्हारे लिए बदलते बदलते...

मेरी, मैं ही, ना हो जाए गुम।। 


होना नहीं चाहती मैं अदृश्य,

दुनिया की भीड़ में....

भले चाहे हो जाऊं

मैं स्वयं मैं ही गुम।।


मैं संतुष्ट हूं पूरी हूं, 

अपनी अदृश्य होने में....

जब मेरा सम्पूर्ण सौंप कर भी....

सदृश ना हो पाऊं मैं, 

बेहतर हूं मैं, तुम्हारी नज़रों में गुम।।





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Shubhangani Sharma

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