बावफ़ा, मेरा सफर

हर किसी के सफर की एक अलग कहानी होती है। अनगिनत उतार चढ़ाव के बाद भी हमारा सफर बदस्तूर चलता रहता है। ऐसे ही एक सफर की कहानी मेरी ज़ुबानी।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 29 Oct, 2020 | 1 min read
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बावफ़ा

एक सबक ये मेरा सफर सिखा गया हमें,

हम जो चाहें वो शायद ना मिले-

पर जो हमें मिले वो हमें चाहना ज़रूर है।।

हर मोड़ पर नया शोख़ होता है दिल को,

नज़रअंदाज़ कर देतें हैं अपने ही कहकर..

ये तुम्हारा एक और फ़ितूर है।।

बड़े अरमान से जब घुंघरुओं को

अपने पैरों से बांधा,

लगा ये सफर तो हम तय कर ही लेंगे...

लगा दिया उसपर भी पहरा, कहकर –

ये मंज़िल तो निहायत ही दूर है।।

कलम उठाकर जो डूबने की चाह,

जोर से उफ़ान मारी थी कभी,

ना रास आया ये जग को...

कह दिया अरे ये काम भी फ़िज़ूल है।।

जब कभी रंगों से खेलने के इश्क में,

अठखेलियाँ कर ली मैंने

तुमने हंस कर ही कह दिया,

बेटा तुम तो हाथ रंग लो...

यही दुनिया का दस्तूर है।।

बात तो ये भी सच्ची थी,

रंग लिए हाथ मेंहन्दी से..

छोड़ा आंगन और आँचल तो क्या...

हुआ वही जो बदस्तूर है।।

हर ख्वाईश पर पहरा,

बदल गया पंछी का डेरा,

दुनिया बदली हम भी बदले,

फिर भी ये शोख़ कमबख्त...

होता नहीं काफ़ूर है।।

हो भी क्यों भला,

ये सफर है मेरा,

जब तक मंज़िल ना मिले,

ये सफर बावफ़ा चलता ज़रूर है।।

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Shubhangani Sharma

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