स्वीकार करती हूँ

तुम्हारी शिकायतें सिर आँखों पर रखती हूँ।।

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Shubhangani Sharma
Shubhangani Sharma 04 Dec, 2020 | 1 min read
Equality # Love # acceptance
तुम्हें जितनी शिकायतें हैं मुझसे, 
मैं सबको अपने सिर आंखों पर लेती हूं...
पर आज मैं तुमसे भी कुछ कहती हूं...
जहां-जहां मैं गलत हूँ, 
क्या तुम हर उस जगह सही थे?? 
मैं जब भी तुमसे कुछ कहती थी,
क्या सच में तुम वहीं थे?? 
जितने इल्ज़ाम देना है दे दो मुझे.. 
मैं सब कुछ सुन सकती हूं, 
पर मुझे एक बात यह भी बता दो... 
क्या मैं तुमसे शिकायत कर सकती हूं??
कई लम्हें तुम्हारे इंतजार में, 
मैंने यूँही बिताए थे। 
जैसे मैं सजाती थी, 
क्या तुमने भी वैसे ही.. 
ख्वाब सजाए थे?? 
खैर!!! तुम्हारी बातें तुम ही जानो.. 
मैं तुमसे क्या कह सकती हूं... 
बस जो शिकायत तुम्हें मुझसे हैं, 
मैं उन्हें सिर आंखों पर लेती हूं।।
अब चलो थोड़ा, 
ये हिसाब भी कर लेते हैं, 
भावनाएं जो व्यक्त की मैंने, 
क्या तुम्हारे अंतस्थ तक पहुँची थी? 
और जो बोला करते थे तुम अक्सर, 
वो भी तुम्हारे अंतस्थ से ही थी??
तुम कहते हो रिक्त हूँ मैं, 
तो मन को पुनः भावनाओं से...
कैसे भर सकती हूँ??
हाँ!! मान लिया जो तुम कहते हो...
तुम्हारी हर शिकायत को, 
मैं सिर आँखों पर रखती हूँ।।
मैं टूटी जब-जब तब, 
तुमनें मुझे जोड़ने की कोशिश ना की, 
और रौंद कर चल देते हो,
मेरे आत्मसम्मान को भी...
फिर भी झुककर, 
घुटनों तक नभ कर...
विष को आत्मसात करती हूँ, 
तुम्हारी हर शिकायत को... 
मैं स्वीकार करती हूँ।।
कई बार सोचती हूँ.. 
मैं ऐसा क्यों करती हूँ,
क्यों तुम्हारे मेरे साथ होने का.. 
दम्भ भरती हूँ,
शायद मैं ज़्यादा ढीट हूँ, 
जो इतना स्वयं पर विश्वास करती हूँ... 
इसलिए खुद असहज हो, 
सबकुछ सहज स्वीकार करती हूँ।।





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Shubhangani Sharma

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