दर्पण

दर्पण अपने ही प्रतिबिंब से अवगत करवाता है।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 23 Oct, 2021 | 1 min read
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कहते हैं दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता, 

मायने, दर्पण सबको एक समान है तोलता।

शायद हाँ, क्योंकि, 

मैंने देखा है एक औरत को दर्पण में झांक कर

मुस्कुराने की नाकाम कोशिश किए जा रही थी, 

चेहरे पर लगे चोट के दागों को श्रृंगार से छिपाने की मायूस सी, लेकिन भरसक कोशिश किए जा रही थी,

जो कुछ देर पहले अकेले में आँसू बहा रही थी।

स्वयं को समझ कर कामयाब, 

जैसे ही होकर पूर्णतः तैयार

पलटी वो औरत जाने को बाहर

साड़ी का छोर अटक गया दर्पण में,

तन के ढ़के हुए दाग उजागर कर दिए दर्पण ने

और खुल गई सच्चाई स्वयं की नजरों में।

तभी गूंज उठी नन्हे दुधमुंहे बच्चे की किलकारी,

जाने कहाँ से जाग उठी ना बुझने वाली चिंगारी।

बाहर ना जाने का फैसला पति को जा सुनाया 

सुनते ही पति ने गुस्से से अपना हाथ जो उठाया

अचानक से पत्नी ने वो हाथ काट खाया

पति समझ ना सका यह आत्मविश्वास पत्नी ने कैसे पाया

मैं माँ की गोद में आँचल तले लिपटा ही मंद-मंद मुस्काया 

गुस्से से दर्पण पर गुलदान जो फेंक गिराया,

दर्पण टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरा हुआ पाया।

तब समझ में मेरी आया,,

दर्पण आखिर काँच का बना होता है

टूटना उसकी किस्मत में लिखा होता है

टूट कर भी वो सच्चाई बयां कर जाता है

टूटा हुआ दर्पण हो या इंसान,

अपनी अहमियत खो जाता है।

इसलिए,, 

टुकड़े-टुकड़े होकर जिंदगी जीने में रखा क्या है?

फेंक दिये जाते हैं टुकड़े एक नया दर्पण लाने को,

संभाल सको तो संभालो खुद को,

यूँ ही टुकड़ों में मत बिखर जाने दो।।

©️ शिल्पी गोयल(स्वरचित एवं मौलिक)

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