भारत देश

एक कविता देशभक्ति की भावना को दर्शाती हुई।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 25 Jan, 2021 | 1 min read
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जहाँ रातों में टिमटिम जगमगाते हैं जुगनू,

जहाँ सुबह- सुबह पक्षी करते हैं कोलहाल,

जहाँ चूल्हे की रोटी और साग के स्वाद के आगे,

फीका है हर होटल का कबाब और नान,

जहाँ औरतें पीसती हैं मसाले सिलबट्टे पर,

जहाँ बच्चे खेलते हैं मिट्टी में लोट-लोटकर,

जहाँ हर मौसम का अलग होता है मंजर,

जहाँ हर त्यौहार का होता है अलग ही उत्सव,

जहाँ हर व्यक्ति का अलग है रूप-रंग,

जहाँ पग-पग पर बदले रहन-सहन का ढ़ंग,

जहाँ लगती है दिवाली की रौनक कभी,

तो कभी होता कहीं ओनम का उत्साह,

जहाँ होता है कभी होली का हुड़दंग,

तो कभी होता कहीं छठ का प्रवाह,

हर प्रांत के हैं अपने-अपने लोकगीत,

है अपनी-अपनी नृत्य की कला सबकी,

कहीं भांगड़ा है किया जाता,

तो कहीं किया जाता है गरबा,

कहीं डांडिया की धूम है मचती,

तो कहीं घूमर की है घूम है उठती,

जहाँ सरहदों पर रक्षा करते हैं जवान,

और देश के लिए अन्न उगाते हैं किसान,

वहाँ का तुमको बयाँन करूँ मैं क्या हाल,

बस इतना कह सकती हूँ कि

यहाँ के लहलहाते खेतों में तुम

बिताकर तो देखो कोई साल।

- शिल्पी गोयल(स्वरचित एंव मौलिक)

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