बेरो़गारी हमारी

It's painful to be a jobless

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Shilpa Singh Maunsh
Shilpa Singh Maunsh 15 Jan, 2021 | 1 min read
Charu

बड़ा खाली सी हूं खुद के छोटी छोटी जरूरतों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हूं,

अब मेरे इन खाली से कंधों पर भी जिम्मेदारियों का भार चाहिए,

रह चुकी बहुत दिनों तक बेरोजगार अब हमे भी रोज़गार चाहिए,


पहले अच्छा लगता था बेवजह की मांग करना बेमतलब की चीजों के लिए ज़िद करना , मगर अब जरूरतों में भी ना किसी से कोई उधार चाहिए ,

रह चुकी बहुत दिनों तक बेरोजगार, अब हमे भी रोज़गार चाहिए,


टैलेंट की कमी नहीं है बस थोड़े से भरोसे का आधार चाहिए,

चलते चलते जिन्दगी की राहों में चप्पलें घिस गई,

मगर मंजिल तक पहुंचते ही पता चलता ही कि हमारी मंजिल तो किसी और के हाथ किसी और को बिक गई,

बहुत हुआ ये धोखाधड़ी अब नौकरी की प्रक्रिया में थोड़ा सा सुधार चाहिए,

रह चुकी बहुत दिनों तक बेरोजगार, अब हमे भी रोज़गार चाहिए,


जेब हमारी खाली है, हमारे लिए सबके मन में न जाने कितनी गाली है,

एक रुपया पास नहीं डिग्रीया लिए फिरते है,

देर रात तक जगते , हर सुबह खुद की नजरो मे ही गिरते हैं,

अब सहा नहीं जाता ये अत्याचार कामयाबी के घरों का खुला द्वार चाहिए,

रह चुकी बहुत दिनों तक बेरोजगार, अब हमे भी रोज़गार चाहिए,


लगन है जुनून है युवा अवस्था का दौड़ता सा खून है बस कुछ कर गुजरने का खुमार चाहिए,

रिश्वतखोरों का बन्द होना अब व्यपार चाहिए,

बिना जुगाड के नौकरी दे ऐसी ही एक सरकार चाहिए,

रह चुकी बहुत दिनों तक बेरोजगार, अब हमे भी रोज़गार चाहिए।।



इस मकरसंक्रांति के त्योहार आओ करे उस रब से ये गुहार,

अगले वर्ष जब आए ये त्योहार तो हम भी देने लायक हो किसी और को खुशियों का उपहार,

रह चुके बहुत दिनों तक बेरोजगार , अब हमे भी खुशियों का अंबार चाहिए।।


Happy maraksankrati all of u.



Composed by... Shilpa Singh Maunsh


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