खूबसूरत ज़ख्म।

एक पति पत्नी के प्यार , आत्मविश्वास और संघर्ष की कहानी।

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 28 Aug, 2020 | 1 min read

सुबह सुबह ताज़ा फूलों की महक और नैना के गजरे से आती भीनी खुशबू से मेरी आंखें खुलीं|

"उफ़ कितनी देर और सोओगे निशांत? उठो बाबा!!"

अधखुली आंखों से मैंने नैना को देखा| सांवली, छरहरी, बदामी आंखों वाली मेरी नैना। अपने हाथों से मेरे बालों को सहलाते हुए उसने फूलों का गुलदस्ता दिया और कहा "शादी की पहली सालगिरह मुबारक निशू!!"

मैं झटके से उठ बैठा, कितना बेवकूफ हूं मैं, आज का दिन कैसे भूल सकता हूं। पिछले हफ्ते तक तो याद था मुझे।

"सॉरी नैना! मैं.. मैं.." कुछ कहता इससे पहले नैना ने मुझे बाथरूम की ओर ढकेल दिया।

"अब जल्दी से तैयार होकर आ जाओ, मैं नाश्ता लगाती हूं।" कहकर मुस्कुराते हुए नैना कमरे से बाहर चली गई।

ये हैं मेरी नैना! हंसमुख, जिंदादिल, खुशमिजाज, कभी उदास या रोते हुए नहीं देखा। मैं तो कभी कभी सोच में पड़ जाता हूं कि कोई इंसान इतना खुश कैसे रह सकता है। आजकल जहां हम हर छोटी-बड़ी रोजमर्रा की जरूरतों से परेशान हो जाते हैं वहीं नैना हमेशा मुस्कुराते हुए ही दिखती है। वो तो पत्थर को भी हंसाने का माद्दा रखती है।

मैं तैयार होकर जैसे ही खाने की मेज पर पहुंचा मैं खुद को रोक नहीं पाया और नैना को गले लगा लिया। नैना ने बड़े करीने से मेज सजाया था, मेरी पसंदीदा चीजें बनाई और मुझे पहला निवाला खिलाते हुए पूछा "तोहफे में तुम्हे क्या चाहिए?"

मैंने उसकी उंगलियां को छेड़ते हुए कहा "तुम्हारा समय मिलेगा??"

हंस पड़ी वो "चलो दिया।" कहकर वह जल्दी रसोई समेटने लगी। नैना डाक्टर है और मैं मल्टी नेशनल में काम करता हूं। दोनों की दिनचर्या बहुत ही बिज़ी रहती है। तो तय रहा तुम अपना काम निपटा कर मुझे हास्पिटल से पिक कर लेना फिर हम डिनर करके कोई अच्छी फिल्म देखने चलेंगे"| कहते हुए नैना ने अपना गजरा ठीक किया और मैं घर के सब दरवाजे बंद करने लगा। हम कार से निकले, नैना को अस्पताल छोड़कर मैं आफिस निकल गया।

शाम 7:30 बजे नैना ने कॉल किया और कहा मैंने काम निपटा लिया तुम आ जाओ। मैं काम में फंसा हुआ था, तो नैना को सीधे रेस्टोरेंट आने को कह दिया और कहा मैं वहीं मिलूंगा। जल्दी जल्दी काम निपटा कर मैं रेस्टोरेंट पहुंचा पर नैना नहीं दिखी, कुछ देर इंतजार के बाद काल किया तो काल नहीं लगा, फिर उसके अस्पताल गया उसके सहयोगियों ने बताया उसको निकले 1 घंटे से ऊपर हो गया। मैं लगातार उसके नंबर पर काल कर रहा था पर काल ही नहीं लग रहा था| मेरा जी घबराने लगा अनहोनी की आशंकाओं से घिरा मैं घर की तरफ मुड़ा| शायद नाराज़ होकर घर चली गई हो, पर वहां भी ताला लगा था। मैं परेशान होकर वापस रेस्टोरेंट की ओर चला कि मुझे एक अंजान नंबर से फोन आया "मिस्टर निशांत उपाध्याय?"

"जी कौन बोल रहा है?" मैं ने हैरानी से पूछा।

"मैं इंस्पेक्टर सावंत, आपका नंबर मुझे आपकी वाइफ के फोन से मिला।"

मेरा जी धक से बैठ गया, आवाज गले में ही अटक गई और मेरा दिमाग शून्य हो गया।

"हैलो मिस्टर उपाध्याय!! आप सुन रहे हैं न?"

"जी...जी..सुन रहा हूं।" मैंने कहा।

"कृपया आप अभी निकलकर अपोलो हास्पिटल पहुंच जाएं। आपकी वाइफ पर एसिड अटैक हुआ है।" मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

ये क्या हो गया? किसने किया होगा? हमारी किसी से दुश्मनी भी नहीं? हजारों सवाल मेरे ज़हन में दौड़ रहे थे| मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था, काश मैं उसे लेने समय पर चला गया होता काश हम किसी और दिन बाहर निकलने का प्रोगाम बनाते। किसी तरह खुद को संयमित कर मैं अस्पताल पहुंचा।

नैना को बर्न यूनिट में रखा गया था। मेरी हिम्मत नहीं हुई उसे देखने की।

इंस्पेक्टर ने बताया कि नैना टेक्सी का इंतजार कर रही थी और वहां काफी भीड़ भी थी| उसके बाजू में जो महिला खड़ी थी ऐसिड अटैक उस पर था, पर उस महिला को बचाने नैना सामने आ गई और ऐसिड उसके चेहरे, गले के कुछ हिस्से और बांह पर पड़े जो बुरी तरह झुलस गये हैं।

औपचारिकता पूरी कर मैं नैना के पास गया| मैं नैना को इस हाल में देख नहीं पाया। किसी तरह खुद को संभालते हुए मैंने हल्के से उसे स्पर्श किया। उसने आंखें खोली मुझे देखा और रोते हुए मुंह फेर लिया। मैं एकदम असहाय होकर घर लौट आया। कुछ एक महीने बाद मैं नैना को घर ले आया। मौहल्ले वाले तमाशा देख रहे थे, ये समाज के वो लोग हैं जो संवेदनहीनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, मरते इंसान की तस्वीर खींचेंगे पर अस्पताल नहीं ले जाएंगे।

दुःख तो इस बात से हुआ कि ये वही लोग हैं जो खुशी में हमारे साथ थे और मदद और मानवता की बड़ी बड़ी बातें करते थे| ये लोग आज मेरी नैना को हीन दृष्टि से देख रहे थे। मुझे फर्क नहीं पड़ता, नैना आज भी मेरे लिए उतनी ही खूबसूरत और खास है जैसे पहले थी। मां बाबूजी को खबर कर बुलाया मैंने। उनके आने से मदद हो जाएगी। नैना एकदम से शांत हो गई, उसकी मुस्कान कहीं गुम हो गई, चुलबुलापन मानो कहीं खो गया। घर से आईना हटाने की सलाह दी मां ने, मैंने मां की बात मान ली। हम नैना को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करते पर नैना का आत्मविश्वास कहीं खो गया था। रात रात भर रोती, ठीक से खाती पीती नहीं, शून्य में देखती रहती। मैं उसके सहयोगियों को बुला आया शायद उनसे बातें कर वह अच्छा महसूस करें। पर नैना ने खुद को एक काल्पनिक कमरे में कैद कर लिया। मां बाबूजी बातें करते और वो बस सुनती कुछ कहती नहीं। कई महीने बीत गए पर नैना में कोई बदलाव नहीं दिखा।

उसे सुरक्षा तो दे नहीं पाया इस बात की टीस मुझे ताउम्र रहेगी, पर अपनी पुरानी नैना को पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था। उसे फूलों का बड़ा शौक था, तो मैंने हर रोज उसके कमरे में ताजे फूल रखने शुरू किये| हमारी पुरानी तस्वीरें दिखाकर उसको अच्छा महसूस कराने की कोशिश की। एक दिन ऐसिड अटैक पीड़ितों पर आर्टिकल पढ़ रहा था तो पता चला उन में आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता जगाने के लिए कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने एक रेस्टोरेंट खोला है जो सभी ऐसिड अटैक पीड़ितों द्वारा चलाए जाता है। मैं मन ही मन खुश हुआ और मां बाबूजी और नैना को डिनर पर उस रेस्टोरेंट में ले गया। वहां पहुंच कर पहले तो नैना असहज हो गई, पर धीरे धीरे उन लोगों को नज़रें उठा कर देखने लगी। उन लोगों का सामान्य लोगों की तरह हंसी ठिठोली करते, काम करते, बातें करते देख उसे अच्छा लगने लगा। उस दिन पहली बार नैना मुस्कुराई। मुझे उम्मीद की किरण दिखी।

फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया| जब समय मिलता नैना मुझे वहां ले जाने को कहती। अब मुझे विश्वास होने लगा नैना में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। नैना अब अकेले उस रेस्टोरेंट में जाने लगी, उन लोगों के साथ समय बिताने लगी| उसमें पुनः आत्मविश्वास जागने लगा, मैं नैना में आए बदलाव से बहुत खुश था। मां बाबूजी संबल की तरह खड़े रहे मेरे साथ।

सुबह सुबह ताज़ा फूलों की खुशबू और नैना के स्पर्श से मेरी नींद खुली "हैप्पी एनिवर्सरी निशू" कहते हुए उसने मुझे उठाया। गुलाबी साड़ी, लाल बिंदी और गजरे में मेरी नैना बेहद खूबसूरत लग रही थी। नैना के वनवास को एक साल हो गए, समय का पता ही नहीं चला। उठ कर बैठा तो दीवार पर बड़ा सा आईना लगा था, नैना उसके सामने जा कर खड़ी हुई, अपने चेहरे के ज़ख्मों को सहलाया, अपनी बिंदी ठीक की, लिपस्टिक लगाई और कहा जल्दी तैयार होकर आ जाओ नाश्ते पर, वरना अस्पताल और आफिस के लिए देर हो जायेगी।

खुशी से मेरा गला भर आया। मैं उठा और नैना को बाहों में भर लिया और कहा "तुम्हें भी आज का दिन और नयी जिंदगी मुबारक और हां आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।"

नैना हंसते हुए कमरे से बाहर चली गई।

स्वरचित

शालिनी नारायणा


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Shalini Narayana

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Umda rachna

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