छोड़ दे तु द्वेष ईष्या वरना तुझको ही जलायेगी |
तेरे ही मन मन्दिर में फिर अपना घर बनायेगी ||
प्रेम बांट और मुस्करा मन में शान्ति आयेगी |
तेरे दर पर हर बहार खुशहाली लेकर आयेगी |
अपनी ही सारी दुनिया कब बात समझ में आयेगी |
जलन कपट से ये इंसां जिन्दगी राख बन जायेगी ||
खाली हाथ जाना होगा हर चीज यहीं रह जायेगी |
देर हो चुकी होगी बहुत क्या खाक समझ आयेगी ||
मार काट झगडे़ दंगे इंसानियत रक्त बहायेगी |
कैसे भला और कब तक ये सृष्टि टिक पायेगी ||
मन को साफ रखोगे जिन्दगी रोशन हो जायेगी|
मुस्कराहट फिर तेरे घर में सज संवरकर आयेगी ||
-सीमा शर्मा " सृजिता"
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