मां की बनारसी साडी़

A story of true love between mother and daughter

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 27 Oct, 2020 | 1 min read

"रानो, तुम्हारे भाई को कल देखने कुछ लोग आ रहे हैं, तुम और दामाद जी सुबह जल्दी आ जाना| सबकुछ तुम्हें ही संभालना है बेटा| तुम्हारे पापा के बस की बात नहीं है अब अकेले सब संभालना| " रानो के पापा दिनेश जी ने कहा|

रानो ने आने के लिए हां कहकर फोन तो रख दिया, लेकिन उसका मन बैचेन हो गया| सोचने लगी पापा सच में कितना अकेले हो गये हैं| मेरी शादी पर तो कैसे सबकुछ भाग-भागकर कर रहे थे और करते भी कैसे नहीं उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए माँ जो थी| कितना कुछ अकेले ही सम्भाल लेती थी माँ, अब उनके बिना कैसे कर पाउंगी सब| मुझ में ना तो मां जैसी फुर्ती है और ना ही मां जैसी समझ और पापा ने कहा है सब तुम्हें ही सम्भालना है| आपके बिना कैसे होगा माँ? आप हमें क्यों छोड़ गई मां, सब कुछ कितना सूना लगता है आपके बिना| मेरा तो उस घर में जाने का भी मन नहीं होता अब, लेकिन पापा और भाई के लिए जाना ही पड़ता है| वहां जाकर नजरें बस आपको ढूँढती हैं और आप नहीं मिलती तो दिल करता है चली जाउं वहां से कहीं दूर, जहां आप को देख सकूं| सच में आपकी बहुत याद आती है मां|"

हाथ में अपनी मां का फोटो लेकर रोते हुए रानो ने कहा|

थोड़ी देर बाद रानो के पति रवि भी आ गये| रानो ने रवि को सब कुछ बता दिया और सुबह जल्दी मायके के लिए निकल ली| वहां पहुँच कर सब कुछ अच्छे से अरेंज किया| वैसे भी पापा और छोटे भाई के अलावा उस घर में था ही कौन| लड़की वालों ने रानो के भाई को पसंद कर लिया| इधर से भी कुछ दिन बाद लड़की देखी और पंसद आने के बाद शादी की तारीख भी तय कर दी गई| शादी से 10 दिन पहले ही रानो अपने घर चली गई थी बड़ी बहन के साथ-साथ मां के फर्ज भी तो निभाने थे उसे| रमा काकी ने भी कहा था, "रानो बड़ी बहन भी माँ की तरह ही होती है, अपनी माँ की जगह सारी रस्में तुझे ही करनी हैं बेटा| आज से अपने भाई के लिए तू ही उसकी माँ है|"

रानो की आंखों में आँसू आ गए काकी की बात सुनकर| शादी का दिन था, आज रानो ने माँ की अलमारी खोली, सामने टंगी थी वही लाल रंग की बनारसी साड़ी जिसे मां ने उसकी शादी में पहना था| कितनी सुन्दर लग रही थी मां उस बनारसी साड़ी में| रानो ने उस साड़ी को बाहर निकाला और माँ की तरह ही उस साड़ी को पहना| बड़ी वाली बिन्दी भी लगाई और आइने में खुद को निहारते हुए मां की फोटो को देखकर बोली, "क्यों मां लग रही हूं ना बिल्कुल आप जैसी? हूँ न बिल्कुल आप की ही परछाई?"

रानो की आंखों में आज आंसू नहीं थे क्योंकि महसूस कर रही थी वो अपनी मां को उस बनारसी साड़ी में| कमरे से बाहर निकली तो सब उसे देखते ही रह गए| रमा काकी ने कहा बिल्कुल निम्मो ही लग रही है| पापा की आंखों में आँसू थे फिर भी वह मुस्करा रहे थे रानो को ऐसे देखकर| भाई तो भाग कर गले लग गया था| कहा था "दीदी आप तो मां ही लग रही हो मां की ये साड़ी पहनकर|"

रानो ने एक माँ की तरह ही सारी रस्में करवाई और अपनी भाभी को घर ले आई| कुछ दिन वहां रहकर पापा, भाई और घर की सारी जिम्मेदारी अपनी भाभी के हाथ में सौंपकर चली आई अपने माँ की वो बनारसी साड़ीलेकर जिससे न जाने कितनी यादें जुड़ी थीं उसकी| जिसे पहनकर वो महसूूस कर सकती थी अपनी माँ को अपने साथ| माँ की उस बनारसी साड़ी और उसके रिश्ते को उसके अलावा कोई नहीं समझ सकता था|

एक माँ और बेटी का रिश्ता बहुत ही खास होता है, बेटी को अपनी माँ की परछाई भी कहा जाता है| वो जब भी ससुराल से मायके जाती है सिर्फ अपनी मां को ही तलाश करती है| भाभी कितनी भी अच्छी क्यों न हो लेकिन मां न हो तो मायके में भी मन नहीं लगता| मैं भी जब घर जाती हूँ तो सबसे पहले मां को ही तलाशती हूं|

अगर आप को भी बोला जाता है आपकी मां की परछाई और आपका भी मन नहीं लगता अपनी मां के बिना मायके में तो कमेंट करके मुझे बताइये और मेरी ये कहानी पसन्द आई हो तो इसे लाइक कीजिये| आप मुझे फॉलो भी कर सकते हैं|

धन्यवाद 

आपकी दोस्त

सीमा शर्मा पाठक



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