प्रेम

प्रेम की परिभाषा

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 10 Dec, 2020 | 1 min read

लिखती हूं मैं अक्सर प्रेम को 

क्योकिं प्रेम सिर्फ किया नहीं है मैंने 

बल्कि बसाया है अपनी रूह के कतरे कतरे में 

रक्त की तरह बहता है मेरी धमनियों में 

रहता है श्वांस श्वांस मेरी धड़कनों में 

प्रेम को महज जाना नहीं है मैंने 

पूजा है खुदा से बढ़कर 

प्रेम को सिर्फ महसूस ही नहीं किया मैंने 

जिया है हर लम्हा हर पल खूबसूरत बनाकर 

प्रेम ही तो जगत का सार है 

खुशनुमा जहान की हर बहार है 

कभी करके देखना महसूस सच्चे प्रेम का एहसास 

खत्म हो जायेगी जिन्दगी की हर तलाश |


-सीमा शर्मा "सृजिता"

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Seema sharma Srijita

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