नकाब

मन के भाव

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 01 Feb, 2021 | 1 min read
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चेहरे पर रखकर नकाब मुस्कराना पड़ता है |

भीड़ भरी दुनिया से हाले दिल छुपाना पड़ता है ||


कौन समझेगा दास्तान -ए-जिन्दगी को यहां |

इसलिए आंखों में अपना गम छुपाना पड़ता है ||


तूफान भी टकरा जायें तो खामोश होते लब मिरे|

कह दी गर मन की बात हंस जमाना पड़ता है ||


अपने ही गिरा देते हैं अपनों पर ही बिजलियां |

चोट खाकर भी यहां खुद संभल जाना पड़ता है ||


टूटते हैं ,छूटते हैं और रूठते है ख्याब कभी |

आशाओं की लौ जलाकर फिर मनाना पड़ता है ||


राह में कदम कदम पर कांटे और पत्थर पडे़ |

पानी है मंजिल अगर तो खुद उठाना पड़ता है ||


सच्चाई को सुनने से अक्सर डरते हैं लोग यहां |

ना चाहते हुये भी उनको झूठ सुनाना पड़ता है ||

-सीमा शर्मा "सृजिता"

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