निर्धन मगर खुद्दार

निर्धन मगर खुद्दार

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 26 Aug, 2020 | 1 min read
#poetry Life #hindipoetry #my_pen_my_strength #hindi

vआम ज़रूरतें पूरी होती नहीं, ख्वाब कैसे सजाऊँ मैं,

छत सर पर है नहीं, सपनों का महल कैसे बनाऊँ मैं,

भूखा हूँ सुबह से मगर भीख का निवाला नहीं चाहिए,

स्वाभिमान जलाकर मिले जो, वो उजाला नहीं चाहिए,


मेहनत करके मिले तो दो कौर भी मेरा पेट भर देता है,

बेईमानी का छप्पन भोग तो जीना भी दूभर कर देता है,

बस अपना ईमान बचा सकूँ और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए,

जिससे झूठे बड़प्पन की बू आए ऐसा लबादा नहीं चाहिए,


निर्धन हूँ, बेचारा नहीं, कैसे और किस किस को समझाऊँ मैं,

ज़िन्दगी मुझे जीने नहीं दे रही इज्जत से, ख्वाब कैसे सजाऊँ मैं।

BY:—© Saket Ranjan Shukla

IG— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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