दिल फ़िर मनमानी करने लगा है

दिल फ़िर मनमानी करने लगा है

Originally published in hi
Reactions 0
234
Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 07 Oct, 2022 | 1 min read
#lovepoetry Newbeginning

शुष्क हो चुके इन लबों पर मुस्कान सजा रहा हूँ,

आँखों में अश्क़ सोखने वाला सुरमा लगा रहा हूँ,


तक़लीफों को दिल के गतालखाने में डाल आया,

माथे की सिकन को, बाल बड़े करके छुपा रहा हूँ,


सिखाया धड़कनों को धड़कना एक लय में हमेशा,

साँसों को सिसकियों के स्वर दबाना सीखा रहा हूँ,


अंदरूनी नासूरों की दवा तो मिल न सकेगी शायद,

ऐसे-ऐसे ही ख्याल दे, ख़ुदको बहला-फुसला रहा हूँ,


दिल ने फ़िर उतारा है “साकेत", तुझे इश्क़ के हाट में,

इसीलिए नए ज़ख्मों के लिए थोड़ी जगह बना रहा हूँ।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

कुछ कठिन शब्दार्थ 👇🏻

शुष्क:— रूखा (Dry)

सुरमा:— आंखों में लगाए जानेवाला एक खनिज पदार्थ का चूर्ण (Antimony)

गतालखाना:— तहखाना (Dungeon)


अंदरूनी:— आंतरिक, अंदर का (Inner)

हाट:— बाज़ार (Market)

0 likes

Published By

Saket Ranjan Shukla

saketranjanshukla

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.