दरिया-ए-इश्क़ में बहकर जो नफ़रत जुटाई है मैंने,
यूँ समझो अपनी दुनिया में ख़ुद आग लगाई है मैंने,
सफ़र को तो मशहूर बना डाला मैंने लिख लिखकर,
हारता कैसे नहीं, मंज़िल से जो मुँह की खाई है मैंने,
हमसफ़र मान कर जिसे हर ठोकर से बचाता रहा मैं,
उसके लिए लड़कर उसकी ही बेवफ़ाई कमाई है मैंने,
जिसे अपना सफ़र, मंज़िल, राह, सब कुछ मान बैठा,
उससे मिले ज़ख्मों के बदले, हर ज़ागीर लुटाई है मैंने,
हारा अभी भी नहीं है “साकेत" दिल बेवफ़ा पर हारकर,
ये देखो ज़रा कि जीतने की चाहत जीतकर गँवाई है मैंने।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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