इश्क़ की सौदेबाज़ी

इश्क़ की सौदेबाज़ी

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 13 Aug, 2021 | 1 min read
#my_pen_my_strength

भारी पड़ी ये सौदेबाज़ी हमें हमारे यार से,

सब कुछ जीतकर भी तो हारे हम प्यार से,


हिस्से कुछ भी तो आया नहीं ग़म के सिवा,

ज़ख्म भी मीठे लगे, इश्क़ के इस तलवार से,


सर झुकाके मिलते थे, तब तक होश था हमें,

ख़ुद को गंवा बैठे, मिलाकर नज़रें दिलदार से,


वो जानती हैं कि उनकी हर अदा क़ातिलाना है,

यूँ सँवर कर कौन मिलता है, अपने तलबग़ार से,


कोई ख़ुमार है “साकेत" या सुरूर है मोहब्बत का,

क्यों आशिक़ी लड़ाते फिरते हो, उनके इंतज़ार से।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG: — my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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