जाऊँ तो कहाँ जाऊँ, हर ओर गहरा अँधेरा है,
कैसे चलता जाऊँ, कोहरे में ढका मेरा सवेरा है,
उम्मीद ख़ुद से रखूँ कैसे, भरोसा टूट गया है मेरा,
पूरा सफ़र सुनसान है, सिर्फ़ गमों का यहाँ बसेरा है,
एक बार की नाकामयाबी ही हौसले सारे डगमगा गई,
घायल कर गई ये पाँव मेरे, कदमों को मेरे लड़खड़ा गई,
है ताक़त लड़ने की मगर अब बाकी हिम्मत ही नहीं रही,
एक बार की हार ये, मेरे वर्षों के मेहनत की नींव हिला गई,
ज़ख़्म अब नासूर बने हैं, दर्द से सिहर रहा हर कतरा मेरा है,
कैसे लड़ूँ जमाने से, जब मन में ही घर कर बैठा ये अँधेरा है।
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