डर मुझे भी लगता है

Poetry on Horrifying situation

Originally published in hi
Reactions 1
525
Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 31 May, 2020 | 1 min read

धड़कनें थी तेज मगर मेरी साँसे थमने लगी थी,

डरा मैं भी इस कदर की नसें भी जमने लगी थी,

चीखना भी चाहा मगर जैसे बेआवाज़ हुआ था मैं,

क्या कहूँ आखिर क्यों यूँ इस तरह बदहवास था मैं,


बस एक आवाज थी जो मुझे ही धमका रही थी जैसे,

घर में पड़ी हर तस्वीर, मुझे आँखें दिखा रही थी जैसे,

हाथों ने साथ छोड़ा, पैर भी मेरे जैसे बेजान हो रहे थे,

काँप रहा था हर ज़र्रा मेरा, हालात बस बदतर हो रहे थे,


हालत मेरी मुझसे पूछो मत, वो आवाज़ अब भी डराती है मुझे,

मैं आज भी सो नहीं पाता हूँ बिना डरे, इतना धमकाती है मुझे।

 BY:— © Saket Ranjan Shukla

 IG:— @my_pen_my_strength

1 likes

Published By

Saket Ranjan Shukla

saketranjanshukla

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.