तुम थे साथ तभी मुक्कमल था मैं कहीं

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 02 Aug, 2020 | 1 min read
Friendship day

शाम की चाय से सुबह के नाश्ते तक,

अधूरी महफिल से सुनसान रास्ते तक,

तुम थे साथ तभी मुक्कमल था मैं कहीं,

जो तुम ना होगे तो फिर रहूँगा मैं, मैं नहीं,


जबसे सँभले हैं कदम मेरे, बस तुम्हें जाना है,

औरों की खबर नहीं, मैंने बस तुम्हें पहचाना है,

मेरे हर पल में मुझे, मेरे होने का एहसास हुआ है,

तुम जो हो तो मेरा हर ख्वाब, इतना खास हुआ है,


सीखा है मैंने अनजान गलियों से भी शान से गुजरना,

चलते-चलते गिरना, फिर बिना वक़्त लगाए सँभलना,

दिल की धड़कनों ने भी नए राग को गुनगुनाना सीखा है,

अपने जज्बातों को भी खुलकर, सबको बताना सीखा है,


भागता फिरता था मुश्किलों से, ठहराव से कहाँ वाक़िफ था मैं,

करता खुद का सामना सलीके से, इतना भी कहाँ काबिल था मैं,

सहारा मुझे बस तुम्हारा था, जब जब खुद से कोई जंग हारा था मैं,

तुम थे तो हौसला बुलंद था मेरा, वरना जैसे बिल्कुल बेचारा था मैं,


हालात मेरे ऐसे भी हुए थे कभी, जब नज़रें खुद से चुराया करता था,

गैर तो गैर ही ठहरे, ख़ुद से भी मिलने से भी जब कतराया करता था,

मुझे मेरे किरदार की तलाश थी और तुम मुझे मुझ जैसे ही लगने लगे थे,

मिलते जुलते थे हालात हमारे, शायद इसलिए भी तुम मुझे जँचने लगे थे,


अब कुछ ऐसा लगने लगा है ऐ दोस्त मेरे कि तू है तो हूँ बाकी मुझमें मैं कहीं,

जो तू है अब हमराही मेरा, फ़िर है सफ़र ये मेरा और हूँ मुकम्मल मैं हर कहीं।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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