फरेबी लगने लगा हूँ

संगत का असर है शायद

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 01 Sep, 2020 | 1 min read
Life #hindipoetry #my_pen_my_strength

फरेबियों के बीच, मैं भी फरेबी लगने लगा हूँ,

सब ठीक है कह कर, खुद को ही ठगने लगा हूँ,

झूठ पे झूठ बोलता हूँ अब, सच अब भाता नहीं,

मैं ख्वाबों से नज़रें चुराकर, बेवजह जगने लगा हूँ,


आइने में अक्स नहीं सिर्फ अंधेरा ही दिखता है मुझे,

हर झूठे शख़्स में अब अपना चेहरा ही दिखता है मुझे,

किस राह में कौन सा मोड़ लेना है, सब भूल गया हूँ मैं,

मंजिलें गुमशुदा हैं, ये सफर भी ठहरा ही लगता है मुझे,


खुद से बातें छुपा-छुपा कर, अंदर ही अंदर सुलगने लगा हूँ,

फरेबियों के बस्ती में अब मैं खुद को भी फरेबी लगने लगा हूँ।

BY:—© Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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