आ ऐ नींद कभी तो ऐसे

आ ऐ नींद कभी तो ऐसे

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 12 Sep, 2021 | 1 min read

आ कभी तो तू ऐसे कि आहट तक न हो,

चिंता न दिल में, कोई घबराहट तक न हो,


हवाएँ भी गुमसुम होके सन्नाटों में खो जाएँ,

तेरे क़दमों से, पत्तों में सरसराहट तक न हो,


आ भर ले कभी मुझे बाँहों में कुछ इस तरह,

सुबह तक मेरे ज़िस्म में सुगबुगाहट तक न हो,


कर दे बेफ़िक्र इतना कि वक़्त की परवाह न रहे,

सुकून दे ज़रा, दिल में कोई हड़बड़ाहट तक न हो,


जकड़ ले ऐ नींद कभी तो “साकेत" को इस क़दर,

कि फ़िर कोई ख़्वाब संजोने की उकताहट तक न हो।


BY:— ©Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength


कुछ कठिन शब्दार्थ 👇🏻


सुगबुगाहट:— आतुरता/व्याकुलता

सरसरहाट:— हवा आदि के गुजरने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि

हड़बड़ाहट:— जल्दबाजी में होने वाली घबड़ाहट

उकताहट:— अधीरता

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Saket Ranjan Shukla

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