मुझे ज़रूरत नहीं है अब किनारे की,
मैं दरिया को ही अपना घर बना लूँगा,
नहीं ज़रूरत मुझे किसी झूठे सहारे की,
मैं ख़ुद को ही अपना सच्चा रहबर बना लूँगा,
मेरा सफ़र है, मुश्किलों को मुझसे ही निपटना होगा,
कोई अजनबी क्यों मुझे मेरी ये राहें समझाने आएगा,
मेरे हैं सवाल, तो जवाबों को मुझसे ही उलझना होगा,
गैर कोई क्यों? मेरी इन पहेलियों को सुलझाने आएगा,
जब दिल की सुनूँ मैं, फिर क्यों हो जरूरत मुझे किसी इशारे की,
जब दरिया ही घर हो मेरा, फिर जरूरत है कहाँ मुझे किनारे की।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह क्या खूब लिखा है
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