आँखें सुरमई, बालों में काली घटाओं सा जादू है,
क्या कहूँ, क्यों उसे देखकर दिल मेरा यूँ बेकाबू है,
गोरे गोरे गालों पर जो उसकी जुल्फ़ें बलखा रही हैं,
ये हवाएँ भी उसके रुख्सारों को छूकर शरमा रही हैं,
जाने कहाँ से आई है मगर हूबहू परियों सी दिखती है,
मुस्कुराती भी है ऐसे, जैसे चाँद पर चांदनी खिलती है,
खिलखिला कर हँसती है जब वो, मैं भी हँस पड़ता हूँ,
चले जिस राह कदम उसके, उसी राह मैं चल पड़ता हूँ,
बड़ी कमाल है वो, बात करते करते भी नज़रें झुका लेती है,
लब मेरे साथ दें तो पूछूँ कि कैसे मुझे मुझसे ही चुरा लेती है।
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