क्या ऐसा पाया था, जो आज खो के रोता है,
ऐसे भी क्या दाग थे, जो दामन धो के रोता है,
शोहरत तूने अपने दम पर तो सहेजा था नहीं,
जो गया सो गया, क्यों पलकें भिगों के रोता है,
कल तेरा था, आज नहीं है, कल फ़िर तेरा होगा,
निरर्थक ही तू दर्दों को, अश्कों में डुबो के रोता है,
बर्बादी का साजो सामान तैयार कर रहा है गम में,
पागल है? क्यों बिखरे ख्वाबों को संजो के रोता है,
ज़ख्म होंगे ताजा अभी, घाव आसानी से नहीं भरेंगे,
बावरों की तरह, क्यों काँटो में सपने पिरो के रोता है,
ये तो शुरुआत है सफ़र की, मुश्किलें और भी आएँगी,
लंबा रास्ता है ये, अभी से ही क्यों बेसुध हो के रोता है,
बेवकूफाना हरकते, जो किए जा रहा है लड़खड़ाते हुए,
लापरवाह है तू, ख़ुद की भी ज़िम्मदारियाँ ढो के रोता है,
भले बुरे, सच्चे झूठे की समझ पता नहीं कब आएगी तुझे,
तू खुद ही राहों में, रिश्तों के ये जहरीले बबूल बो के रोता है,
जागती आँखें क्या कम पड़ने लगी हैं, जो अब यूँ सो के रोता है,
जिसकी तलाश थी वो तो पाया नहीं, फिर क्या है जो खो के रोता है।
BY:— ©Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Well penned
Thank you so much 🙇
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