नाउम्मीदी को कैसे अपना संसार मान लूँ,
ख़ुद को सिर्फ़ अश्क़ों का हक़दार मान लूँ,
थका थोड़े ही हूँ कोशिशें कर-करके अभी,
क्यों फ़िर ख़ुद को अभी ही बेकार मान लूँ,
चट्टानों को मेरे क़दमों की आहट से डर था,
अब कैसे अनजान रोड़ों को दीवार मान लूँ,
जख़्मों की परवाह किए बिना चलता रहा मैं,
फ़िर क्यों ख़ुद को, ख़ुद का गुनहगार मान लूँ,
ये हार मेरे सफ़र को मायूस कर देगी “साकेत"
फ़िर कैसे, आख़िरी साँस से पहले हार मान लूँ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut khoob
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