अटक सा गया हूँ शायद

अटक सा गया हूँ शायद

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 14 Oct, 2021 | 1 min read

न तो गिरता हूँ, न ही सँभलकर चलने पाता हूँ,

न तो बदलता हूँ, न ही हालात बदलने पाता हूँ,


उकता सा गया हूँ, एक ही हार से हार हार कर,

न तो थकता हूँ, न ही दोबारा से लड़ने पाता हूँ,


ये किस तरह की भूल-भुलैया हो चली है ज़िंदगी,

न तो रास्तों में उलझता हूँ, न ही समझने पाता हूँ,


एक ही मोड़ से गुज़रा हूँ, जाने कितनी ही दफ़ा मैं,

न तो चोट भूलता हूँ, न ही सीख याद रखने पाता हूँ,


जलाता रहा ख़ुदको “साकेत" अंधेरी रातों के डर से,

न तो ख़ुद को दिखता हूँ, न ही मशाल बनने पाता हूँ।


BY :— © Saket Ranjan Shukla

IG :— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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