मेरी हमराज़ क़लम

मेरी हमराज़ क़लम

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 14 Feb, 2021 | 1 min read
#my_pen_my_strength

वो महफिलें नहीं रही अब, जहाँ कुछ सुनाऊँ मैं,

ना ही अब वो लोग हैं जिन्हें दर्द-ए-दिल बताऊँ मैं,

वक़्त के साथ मेरे हर अपने ने पराया किया है मुझे,

कैसे‌‌ इन ज़ख्मों पर हँसने वालों को कुछ समझाऊँ मैं,

जो भी किरदार मिलते हैं, मतलब के रिश्तेदार मिलते हैं,

इनसे भला कैसे कभी भी मदद की कोई आस लगाऊँ मैं,

ये कोरे पन्ने चीखते हैं और चीखती दिल की हर दीवार है,

अल्फ़ाज़ रूठे बैठे हैं, कैसे स्याही के सहारे सँभल जाऊँ मैं,

अब ये सोचता हूँ कि बचा क्या है तेरी महफ़िल में “साकेत",

ऐसे हालात में भी क़लम को नहीं तो किसे हमराज़ बनाऊँ मैं।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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