क्या ही मिलेगा, सोचो ज़रा

क्या ही मिलेगा, सोचो ज़रा

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 11 Jun, 2022 | 1 min read
#my_pen_my_strength

अतीत को मन के संदूकों में सहेजकर क्या मिलेगा,

मन के शांत सरोवर में कांकड़ फेंककर क्या मिलेगा,


भूल जाना ही भला होगा भर रहे ज़ख्मों के टीस को,

जानबूझकर बेवजह नासूरों को कुरेदकर क्या मिलेगा,


माना दुखाती हैं दिल, बीती बातें कई याद आ जाने पर,

बातों को बिगड़ जाने की हद तक खेंचकर क्या मिलेगा,


कई टुकड़ों में बिखरा है ख़्वाब वो, जो गैरों के भरोसे था,

अब नए ख़्वाब संजोने हैं, बिखरों को समेटकर क्या मिलेगा,


जो गए हैं छोड़कर “साकेत", उन्होंने मुड़कर भी न देखा कभी,

दिल दुखेगा कुछ दिन मगर अब रस्ता भी देखकर क्या मिलेगा।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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