मंज़ूर नहीं

मंज़ूर नहीं

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 20 Jul, 2021 | 1 min read
#poetry Life #hindipoetry #my_pen_my_strength

लड़खड़ाना भला, रुक जाना मंज़ूर नहीं,

ज़ख्म बढ़ाना भला, थक जाना मंज़ूर नहीं,


एक स्वाभिमान ही तो है जो कमाया है मैंने,

ख़ुद से टकराना भला, झुक जाना मंज़ूर नहीं,


होंगी मुसीबतें और भी इस राह में तैयार खड़ी,

ख़ुद को आजमाना भला, डर जाना मंज़ूर नहीं,


तक़दीर नहीं, मेरे हौसले के भरोसे है सफ़र मेरा,

हार पे दाँव लगाना भला, बिखर जाना मंज़ूर नहीं,


ज़िद कहो या अकड़ कह ही लो इसे “साकेत" की,

फैसले पे पछताना भला, पीछे हट जाना मंज़ूर नहीं।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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