मैं ही ग़लत था, चलो मानता हूँ,
लेकिन मैं तुम्हें भी तो पहचनाता हूँ,
तुम खेल सारे खेलोगे मगर छुप कर,
और मैं तुम्हारे सारे दाँव पेंच जानता हूँ,
चढ़ा फ़िर भी मुझपे तेरा ख़ुमार है शायद,
लगता है जैसे इश्क़ का ही बुखार है शायद,
गैरों के लिए मुझसे किए वादे से मुक़र गए हो,
ये बेवफ़ाई भी तुम्हारी आदत में शुमार है शायद,
बेवकूफ ही हूँ मैं, जो आज भी तुम्हें रब मानता हूँ,
तुम क्या समझाओगे हालात मुझे, मैं सब जानता हूँ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Well penned
Thank you so much Deepali Sanotia jeee
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