क्या करूँगा?

क्या करूँगा?

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 14 Nov, 2021 | 1 min read

देखते-देखते खेल बदल जाएगा तो क्या करूँगा,

मेरा ही प्यादा मुझे ही छल जाएगा तो क्या करूँगा,


न जाने कितने अरसे बाद ज़िन्दगी में सवेरा हुआ है,

ये सूरज भी मुझसे रूठ ढल जाएगा तो क्या करूँगा,


हिस्से मेरे फिर, सिर्फ़ ये अंधेरा ही रह जाएगा शायद,

रात के डर से दिल ही सिहर जाएगा तो क्या करूँगा,


मुझे अपना भी चंद लोग ही कहते हैं, मदद माँगते हुए,

उनका भी कहीं मतलब निकल जाएगा तो क्या करूँगा,


बाहरी तो कोई मुझे नुकसान पहुँचा नहीं सकता “साकेत",

साँप कोई कभी आस्तीन में ही पल जाएगा तो क्या करूँगा?

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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