हे जन्मदात्री सचेत बनो,
आदि शक्ति विशेष बनो,
तोड़ो मोह माया के बंधन,
जग कल्याण नये भेष धरो।
उठो,अपनी क्षमताओं को जानो,
अपने उड़ान को तुम पहचानो,
मर्यादा में बँधकर तुम सदा,
अपनी सभ्यता को उत्कृष्ट मानो।
तुम्हारी सरलता ही तुम्हारा बल है,
तुमसे ही जग को मिलता संबल है,
अपनी क्षमताओं पर हो पूर्ण भरोसा,
यही तुम्हारा सबसे बड़ा आत्मबल है।
अपनी क्षमताओं को कम मत आँको,
अपने परों को तुम मत कभी काटो,
जो आँख उठे बुरी नियत से तुम पर,
उनको तुम सदा ही तुम डाँटो।
तुम हो जननी ,कुल रक्षिणी ,गृहलक्ष्मी,
खुद को सीमाओं में मत तुम बाँधो,
प्रेम रूप निर्मल निश्छल ह्रदय तुम्हारा
अपनी सीमाओं को तुम खुद मापो।
हे जन्मदात्री उठो जागो तुम अब,
एक नव युग का संचार करो
एक नई इबारत लिखने को ततपर,
गलत का तुम प्रतिकार करो।
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