सीख

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 15 Oct, 2021 | 1 min read




है मन में अंतर्द्वंद समेटे ,इसको मैं सुलझाऊँ कैसे,

मन की व्यथा मन की पीड़ा बोलो मैं बताऊँ कैसे,

मुस्कान सजा है चेहरे पर उलझे हैं सब इनमें ही,

अपने मन के जख्मों को बोलो मैं दिखाऊँ कैसे।


झूठ फरेब में उलझी दुनिया सच्चाई कहाँ देखती,

सूरत के आगे वह सीरत की अच्छाई कहाँ देखती,

बाहरी दिखावे में उलझी है वो सदा ही है,

सादगी और सहजता की बड़ाई बोलो कहाँ देखती।


हमने भी हर जीवन बाधा पार करना सीख लिया,

गिरकर उठकर फिर चलना अपने दम सीख लिया,

सीख लिया है खुद को हर मुश्किल में आजमाना,

आँसू पोछ होंठो पर मुस्कान सजाना सीख लिया।



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