जीवन

जीवन समर

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 10 Apr, 2022 | 1 min read

जीवन में विष के छोटे छोटे घूँट,

जाने अनजाने ही पीने पड़ते हैं।

लाख चाहे हम इनसे बच जाएं,

पर नियति को स्वीकार कर 

सदा ही हमें जीने पड़ते हैं।


ईश्वर का यह अदृश्य विधान,

कैसे कर्म क्या मिले उसका मान,

हँस कर लड़े जिंदगी के समर में

या फिर रोकर काट ले इसको,

पर इस समर में भाग लेने पड़ते हैं।


बेचैनी ,छटपटाहट और कुलबुलाहट,

रास्तों की नही मिल रही आहट,

हर तरफ घना अँधेरा है दिख रहा,

मन में बढ़ रही है रोज ही घबड़ाहट,

पर फिर भी मशीनी जिंदगी जीने पड़ते हैं।


घड़ी की सुइयों पर है टकटकी बाँधे,

मन डोलता है हर्ष विषाद की तरफ आधे -आधे,

क्या छुपा भविष्य के गर्भ में नही पता,

बढ़ा रहे कदमों को बड़े ढंग से साधे,

हर हाल में साँसें है गतिमान स्वीकारने पड़ते हैं।


अपना हौसला छूटता जाता फिर,

दूसरों का हिम्मत बनने की जद्दोजहद,

मुस्कान साध कर चेहरे पर सदा ही,

आँसूओं को पीते गरल सदा ही मान,

यही जिंदगी के ताने बाने इसको साधने पड़ते हैं।

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