हम हैं बेटियाँ नाजुक सी,
पिता हमारी जान।
हम हैं खिलती हुई कलियाँ
पिता हमारी पहचान।
प्रथम पुरुष जीवन में
जिन्हें दिलों ए जान से चाहा।
हर बार जब भी गिरे हम,
उन्होंने हमें है लाड़ से उठाया।
हम हैं बेटियाँ नाजुक सी,
पिता हमारी शान।
उनके ही नाम से जुड़े हम
उनसे ही मिली पहचान।
जिम्मेदारियों का बोझ लिए कंधे पर,
सदा आगे को बढ़े वो।
मौन रहकर कर्तव्य पथ पर चले सदा,
उफ्फ तक नहीं किये वो।
प्यार और परवाह बस उनके कर्मों से ही जाना,
प्यार करते हैं सदा वो हमें बोली से नही माना।
अनुशासित जीवन का पाठ सदा ही पढ़ाया,
दृढ़ निश्चयी बन कर्तव्यपथ पर बढ़ना सिखाया।
उनके पदचिन्हों पर चल बनाई अपनी पहचान,
हम हैं बेटियाँ नाजुक सी पिता वट वृक्ष समान।
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