स्वप्रेम

स्वप्रेम

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 10 Dec, 2022 | 0 mins read

जिंदगी की तमाम उथल पुथल के बीच

तमाम बुरे हालातों और उलझनों के बीच,

मरने की हद तक दर्द और तकलीफ के बीच,

स्वयं से प्रेम और स्वयं का ख्याल,

इतना आसान भी नही मगर नामुमकिन नही।


जब भी आईने में निहारती हूँ स्वयं को,

अपने अंदर की रुचि से नजरें मिलाती हूँ।

स्वयं से प्रेम जतलाकर के स्वयं को आजमाती हूँ,

और फिर स्वयं को मजबूत बनाती हूँ।


तमाम अनादर और उपेक्षाओं के बीच,

अपनी अपेक्षा मैं स्वयं से रखती हूँ।

स्वयं को आत्मविश्वास का शृंगार कर बड़े

प्रेम से सजाती और सँवारती हूँ

और खुद से प्रेम कर आत्ममुग्धा सी बन जाती हूँ।


क़रतीं हूँ स्वयं से प्रेम अपनी मुस्कुराहट को

अपने होठों पर सजाकर,

दिल से सारे काश और आस को मिटाकर,

खुद को सँवारकर और मजबूत कर,

और फिर जिंदगी को जीना सिखाती हूँ।


स्वयं से मेरा यह प्रेम मुझे निखारता है,

मुझे मजबूत बनाता है।

मुझे जिंदगी जीने को प्रेरित करता है,

और उदासियों के कुहरे से दूर ले जाता है।


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