उम्र का बढ़ना,अनुभवों का बढ़ना
और संग में पल पल समय का बदलना।
जीवन के साथ हौसलों का बढ़ना,
हिम्मत का बढ़ना,
और दर्द सहने करने की क्षमता का बढ़ना।
पल पल मैं बदल रही हूँ।
कुछ नया ,हर रोज सीख रही हूँ।
सीख रही हूँ जमाने की आँख में आँख
डालकर चलना
थोड़ा अपने आत्मविश्वास को मजबूत करना।
संवेदनशील भी थोड़ी ज्यादा हो रही हूँ।
मगर संग में भावुकता पर संयम
की नित प्रतिदिन गुजारिश प्रभु तुमसे कर रही हूँ।
चाहती हूँ थोड़ा खुलकर जीना ,
थोड़ा खुलकर जी रही हूँ।
मगर संग में मर्यादा के बंधन को बचाना,
थोड़ा अपनी उन्नति का मार्ग ढूढना,
थोड़ा अपनी इच्छाओं को जीना,
बस प्रभु से प्रार्थना की मौके उपलब्ध हो।
मैं स्वयं को बदल रही हूँ।
टूटने पर खुद को समेटना,
दर्द को अपने भीतर छुपाना,
बनकर ढाल परिवार के साथ खड़े होना।
मैं हर दिन कोशिश कर रही हूँ।
जो ऊँगली मुझ पर उठाए,
रिश्ते का मर्म जो समझ न पाए,
उनके लिए मैं खुद को मजबूत कर रही हूँ।
उम्र के साथ तजुर्बे का बढ़ना,
तजुर्बे के साथ मौन होकर निकलना
नही कभी अपनी बात कहने से झिझकना
यह कोशिश कर रही हूँ।
हाँ मैं बदलने का यत्न हर दिन कर रही हूँ।
जिंदगी के काले सफेद रंगों से
इंद्रधनुषी रंग बनाना
हाँ यही करने की कोशिश कर रही हूँ।
मुस्कुराहट के शृंगार से निखरने की
मैं कोशिश कर रही हूँ।
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