रात

रात

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 26 Jul, 2022 | 1 min read

साँवली सी रात आई लेकर कुछ ख़्यालात,

उनींदी सी पलकें और बिखरते जज़्बात।


सोचों का अनवरत सिलसिला चलता रहा,

कैसे और किसे समझाऊँ अपने ये हालात।


मजबूरियों की फटी चादर और दर्द गहरा,

कैसे दिलासा दे खुद को की ये नही बड़ी बात।


तिमिर गहरा वीरानगी छाई मन के भीतर,

इस साँवली सी रात उभरते कितने सवालात।


जिंदगी के दाँव पेंच में उलझते ही रह गए,

शतरंज सी चालें इसकी देती शह और मात।


नाउम्मीदी की रात सबक सिखलाती सदा मुझे,

आशाओं का सूरज निकलेगा बीतेगी ये रात।


मैं चौराहे पर जिंदगी की खड़ी हूँ इंतजार में,

साँवली सी रात करायेगी जिंदगी से मुलाकात।

     

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