धरती

धरती

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 22 Apr, 2022 | 0 mins read

धरिणी धरा धरती अनेकों नाम इसके,

सब्र सहनशीलता संयम पहचान इसके,

परोपकार का सदा ही ये गुण सिखाती,

माँ समान देखती यही है काम इसके।


मनुज बना स्वार्थी इसको चोट पहुँचाई,

स्वयं के लाभ हेतु हरियाली है मिटाई,

पेड़ पौधों को काटा राह को साफ किया,,

कंक्रीट के जंगल इन्होंने हर जगह बसाई।


कथित विकास ने उर्वरा शक्ति छीना,

दूषित हुई धरा मुश्किल हो गया जीना,

खेतों में पैदावार के लिए कीटनाशक,खाद,

वसुधा को यह गरल पड़ गया पीना।


मीलों तक फैली वसुधा नही कोई आसरा,

मनुज के बोझ को उठाये वह सारा,

फिर भी गंदगी लापरवाही नही कोई सुरक्षा,

धरती माँ स्वरूप उसके संतान बनें प्यारा।

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