कविता जीवन में रस घोलती

कविता जीवन में रस घोलती

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 Mar, 2022 | 0 mins read

जब जब हुआ व्यथित मन,

बढ़ गया ह्रदय का स्पंदन,

जुबा न देते साथ जब कभी,

शब्द बन आये कविता निश्छल।


खुशी का अतिरेक जब हुआ,

भाव सारे शब्दों ने पी लिया,

नही कोई साथी सगा अपना,

कविता जीवन में अपना सा लगा।


जीवन के हर रस जब पड़े फीके,

शब्द लगते हैं जब दर्द सरीखे,

कभी शृंगार दिख गया कविता में

कभी वियोग के रस भी दिखे।


प्रेम का भाव था जब चरम पर,

नही मिला कोई मनमीत अपना,

ईश्वर को समर्पित किया भाव अपना,

भक्ति रस जिंदगी में घुल गए जैसे।


लाड़ जब माँ ने हर बार उठाया,

मेरे दर्द में उन्हें विकल जब पाया,

मेरे शब्द और भाव थे उनके

वात्सल्य रस मेरी कविता में घुल आया।


कविता जीवन में रस घोल गयी,

हिय के सारे शब्द है तौल गयी,

कविता जो है मन के सकल भाव सारे,

जज़्बात जो है लेखनी संग बिखर गयी।

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Ruchika Rai

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