एक टुकड़ा धूप का

सबके लिए

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 Apr, 2023 | 1 min read

एक टुकड़ा धूप का जीवन में मैं पाऊँ,

उससे ही मैं सबको उष्णता दे पाऊँ,

जैसे शीत की कड़कड़ाती ठंड में,

धूप आने की आमद की आस ही राहत दे जाएं।


बस एक टुकड़ा धूप का जीवन में चाहूं,

उदास होठों पर मुस्कान लेकर आऊं

जैसे भरी दुपहरी में पेड़ों के नीचे की छाया,

तप्त तन मन में थोड़ी शीतलता पहुँचा पाएं।


हाँ एक टुकड़ा धूप का मुझको मिल जाएं,

उससे ही बेसहारों का कांधा मैं बन जाऊँ,

जीने की आस छोड़ चुके जीवन की परेशानियों से,

उनके अंदर जिजीविषा मैं एक बार फिर जगाऊँ।


जब मरने की हद तक जीवन से नफरत हो

मैं जिंदगी से प्रेम करना एक बार फिर सिखाऊँ।

मेरे होने भर से जिंदगी को समझ ले कोई,

अपने होने को मैं सार्थक ऐसे ही कर पाऊँ।


जानती हूँ जीवन की दुश्वारियां बड़ा ही सताती है,

ज़िंदगी से हिम्मत को दूर भगाती है।

अपने ही शब्दों से कुछ चमत्कार कर जाऊँ

निराशा के घने गह्वर से किनारे मैं लेकर आऊं।


एक टुकड़ा धूप हो,मुट्ठी भर आसमान मिले

छोटे छोटे प्रयासों से चेहरे पर मुस्कान खिले।

बस मेरी कोशिशों की सफलता का 

एक आस सदा ही मेरे मन में जगे।

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Ruchika Rai

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