तोड़ना

मोह के बंधन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 14 May, 2022 | 1 min read

मोहपाश जीवन के सारे 

धीरे धीरे तोड़ रही हूँ।

अपने पराये के भेद भूलाकर

मैं इंसानियत से जोड़ रही हूँ।


ईर्ष्या द्वेष की गहरी खाई,

मेरे मन में थी जो समाई।

पर निंदा में रस जो पाया,

विष बनकर सीने में समाई।


तन के प्रेम की प्यास भुलाकर,

मन को मन से जोड़ रही हूँ।

जीवन के राहों में बढ़कर,

प्रेम के मोहपाश तोड़ रही हूँ।


आकांक्षाओं का बोझ जो मन पर,

उपेक्षाओं से चोटिल जो हुआ।

उन अभिलाषाओं को मुक्त सदा कर,

ईश्वर से खुद को जोड़ रही हूँ।


अफ़सोस सारे मन से मिटाये,

जैसे पतझड़ के बाद नई कोंपले आये।

जो है सत्य स्वीकार कर उसको,

जीवन को आत्मा से जोड़ रही हूँ।

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Ruchika Rai

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