अपना प्यारा गाँव

अपना प्यारा गाँव

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 30 Nov, 2021 | 0 mins read



हरा भरा है मेरा गाँव,

जहाँ मिलती शीतल छाँव,

मधुर मंद समीर बहे,

जहाँ बनाये अपना ठाँव।


बैलों के गले की घंटी,

जीवंतता का एहसास कराये।

धान के खेतों में गाती औरतें,

मन को मधुर एहसास कराये।


गाँव का वो दुर्गा मंदिर

शक्ति पीठ बन विश्वास भर जाए।

वो डीह बाबा के मजार पर चढ़ाते चादर,

सर्व धर्म समभाव दिखाए।


शाम को चौराहे पर लगता बाजार,

मन में उमंग और जोश भर जाये।

वो दादा दादी की परीकथा एक

अलग ही दुनिया में लेकर जाये।


वो बागों में है कच्ची अंबिया

वो इमली की खट्टी मीठी लड़ियाँ

वो मटर टमाटर कच्चे तोड़ खाना,

याद आता है वो गाँव पुराना।


अब तो न वो गाँव रहा,न वो लोग रहे,

आधुनिकता की है सब भेंट चढ़े।

वर्ष में एक दो बार होता है जाना,

जिम्मेदारियों का बोझ पुराना।


फिर भी गाँव मेरा मुझे याद आता है,

पल भर में मन दौड़ा चला जाता है।

वो पड़ोस की चाची का गरियाना,

अमृत बन कर बरस जाता है।



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