जीवन संग सिर्फ सुख की अभिलाषा क्यों
खुशी की अपेक्षा क्यों?
स्वीकार करो जीवन को सुख दुख दोनों संग,
हर्ष विषाद दोनों के बिन जीवन हो जाता है
सदैव ही बेरंग।
सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का चक्र,
दिन भर के उजियारे के बाद
गहन काली तिमिर का प्रवेश
देता है यह सीख,
परिवर्तन सृष्टि का नियम।
दर्द का होता जब अतिरेक,
तभी खुशी का पावन प्रवेश।
तप्त आकुल गर्मी के बाद,
रिमझिम बूँदों का आना।
राहत और सुकून देता
और आनंदित होता मन का कोना।
पतझड़ के बाद बसंत,
आँखों को देता है राहत।
बदबू के बाद ही फूलों की खुशबू,
मन को है राहत पहुँचाये।
और ठीक उसी प्रकार
दस बुराइयों के बीच एक अच्छाई,
हमको है प्रभावित कर जाए।
सौ झूठ के बीच एक सच्चाई
अपनी ओर है खींचे।
जीवन चक्र में है महत्व सबका
थोड़े अच्छे थोड़े बुरे।
बस इसीलिए जीवन को अपनाओ,
उसके संग उसके रूप को आदर सम्मान दो।
चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
क्योकि नही पूर्ण ये जीवन
नही है इसकी सोच
नही है जीवन का तरीका,
नही है जीवन के संग जीवन।
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उम्दा
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