टूटता तारा

टूटता तारा

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 09 Jun, 2022 | 0 mins read

जीवन की आपाधापी में गुम हुआ जो,

जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया जो,

खुशियों की तलाश में भटकता ही रहा,

मैं नही कोई और बस एक टूटता तारा।


प्रेम समर्पण और त्याग की मिसाल हूँ,

विश्वास की राह पर चले वो सवाल हूँ,

अपनी पहचान बनाने को आतुर सदा,

मैं आसमा से गिरा टूटता हुआ सा तारा।


हर दुआओं को पूरा करने में काम आऊँ,

बिखरते वजूद को मैं संभालना ही चाहूँ,

चाहतों को पूरा करने को प्रयासरत्त रहा,

झिलमिल सा मैं बनूँ एक टूटता हुआ तारा।


माँ के कलेजे का टुकड़ा बन दिल में समाऊँ,

बनकर सपना मैं आँखों में सदा ही बस जाऊँ,

जीवन की राह पर साथी बनकर संग मैं चलूँ,

जगमग सा नभ मैं करूँ मैं टूटता हुआ तारा।

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Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

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  • Manoj Kumar Srivastava · 1 year ago last edited 1 year ago

    अच्छी लगी आपकी कविता।

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