स्त्री स्वतंत्रता

स्त्री की आजादी

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 05 Mar, 2021 | 1 min read

चल रही थी स्वतंत्रता की बात,

मुद्दा था सबके लगा एक हाथ,

स्वतंत्रता स्वच्छंदता बन जाती है,

जब आजादी या छूट दी जाती है।

मेरे मन में बस आया एक ख्याल,

रबड़ को देखा कभी तुमने,

जितना खींचो उतना ही टूट जाता।

फिर क्यों खींचते हो बंधन के नाम पर

छोड़ दो उसके उस हाल पर।

देखना खुद बखुद वो फर्क करना सीख जाएगी,

सही गलत को पहचान पाएगी,

जिम्मेदारियों को भी पूरी तरह निभाएगी।


स्त्री स्वतंत्रता की बयार जब बहती है,

योजनाओं की गणना चलती है,

नारी उत्थान के नारे जलसे,

बयानबाजी खूब जोर शोर से होती है,

आरक्षण के नियम भी गिनाए जाते हैं

पर सोच कैसे बदले ये नही बताये जाते हैं।


स्वतंत्रता की बात जब चलती है,

जिम्मेदारियों की बात सिर चढ़कर बोलती है,

नौकरी पढाई गृहस्थी की बात चलती है,

आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर मॉल में शॉपिंग घरदारी की जिम्मेदारी बस यही कहती है।


लेकिन अफसोस चंद फिक्स डिपाजिट पर नाम,

कुछ जमीन के कागज 

और कुछ गहने 

पर्स में चंद रुपये बस यही आर्थिक स्वतंत्रता के नाम दी जाती।

और कहा जाता जमाना बदल रहा,

स्त्रियों को आजादी मिल रहा

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Ruchika Rai

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