संभावना

संभावना बनना चाहती

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 03 Jul, 2021 | 1 min read

जीवन में संभावनाओं की तलाश में

भटकते हुए लोगों की,

चेहरे पर मुस्कान लाकर मैं जिंदगी की 

संभावना बनना चाहती।

दर्द से बिलबिलाते जख्मों के ऊपर

रुई के फाँकों से रखी हुई दवा बनूँ

बस इतना ही चाहती।

जब मन की पीड़ा से आहत हो कोई

तब उस मन में एक सुखद कल्पना बन

होंठों पर थिरकना चाहती।

चाहती हूँ जिससे मिलूँ जब भी मिलूँ

सुकून के दो पल दे सकूँ,

मैं डूबते उम्मीदों को जगाना चाहती।

बहुत दूर तक सुनसान राह हो,

डर हो ,राह में पत्थर हो,कई बाधायें हो

बाधाओं को भले न दूर कर सकूँ

पर साथ चल रास्ते का भय मिटाना चाहती।

जानती हूँ दुनिया में अच्छाई के संग बुराई है,

बुराई न मिटा सकूँ भले ही

पर अच्छाई की रोशनी का एक टिमटिमाता

सितारा बनना चाहती।

दर्द को सहा है पीड़ा को जिया है,

अकेलेपन के नश्तर ने ज़ख्म कुरेदे और हरे किये हैं।

मैं उन ज़ख्मों पर मरहम बनना चाहती।

मैं बस डूबती उम्मीदों के बीच

एक संभावना बनना चाहती।

और नही कुछ तो मैं उस राह का मार्गदर्शक बनना चाहती।

मैं बस इतना ही बनना चाहती।

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Ruchika Rai

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