प्रेम नही लिखती

प्रेम नही लिखती

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 02 Jun, 2022 | 1 min read

जीवन के सफर में हर्ष ,विषाद

सुख दुख,प्रेम दर्द बहुत कुछ गुजरता है।

कभी हौसले हथियार बनते हैं,

तो कभी मन टूट कमजोर हो बिखरता है।


इन राहों में गुजरते हुए जब सभी

प्रेम पर लिखते हैं अपनी भावनाएं।

मैं प्रेम पर नही लिख पाती।

क्योंकि प्रेम एक शीतल मंद बयार की तरह

आता है।

थोड़ी सी शीतलता देकर वह गुजर जाता है।

फिर दर्द बन जाता है चिरस्थायी

और कलम स्वयं ही दर्द लिख जाती है।


जीवन रण में भाग लेते हुए 

जब सभी जीत का जश्न लिखते

मैं हार की व्यथा लिख जाती

या फिर लिख जाती जीवन समर में

आने वाली पीड़ाओं को।

क्योंकि एक रण से लड़कर जब तक

जीत का जश्न मनाती।

तभी दूसरा इम्तिहान शुरू हो जाता है,

साथ ही शुरू होता है कश्मकश।

और फिर मेरी कलम स्वयं ही उलझनों 

को पन्ने पर उकेर देती है।


जीवन राहों पर चलते हुए 

मिलती हैं कभी अचानक से चकाचौंध

करने वाली रोशनी।

तब भी मैं रोशनी पर नही लिख पाती,

लिखती हूँ अँधेरों को दूर करने के लिए

संघर्षरत हो जुगनू की तलाश।

क्योंकि एक जुगनू के प्रकाश से

जीवन के हर अँधियारे को दूर 

करने की मेरी कोशिशें लगातार रहती।

और फिर लिख जाती हूँ,

अँधेरी राहों की दुश्वारियाँ।


मैं चाहती हूँ लिखना प्रेम पर कुछ

नज़्म गजल या फिर कोई गीत

पर मृगतृष्णा सी तलाश में भटकता हुआ मन।

अधूरी ख़्वाहिशों के मायाजाल में

भटकता ही रहता।

और फिर दर्द ही मेरे लेखनी से पन्नों पर उतरता।



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Ruchika Rai

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